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आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और गलत जीवनशैली के कारण कई तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। इन्हीं में से एक है सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस, जिसे गर्दन के गठिया के नाम से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की उम्र से संबंधित समस्या है, जो गर्दन की हड्डियों, जोड़ों और डिस्क में होने वाले घिसाव के कारण होती है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस आजकल आम समस्या बन गई है, लेकिन सही देखभाल और नियमित व्यायाम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यदि आप भी इस समस्या से परेशान हैं और आसपास इलाज के लिए सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस हॉस्पिटल (Cervical Spondylosis Treatment Hospital near me) की तलाश कर रहे हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित होगा। इसमें हम जानेंगे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के लक्षण और उपचार के बारे में।
ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100.
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस एक गर्दन से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या है, जो गर्दन की हड्डियों (सर्वाइकल वर्टिब्रा), डिस्क और जोड़ों में होने वाले घिसाव या क्षति के कारण होती है। यह आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ विकसित होती है और इसे गर्दन का गठिया भी कहा जाता है। हमारी गर्दन में सात हड्डियां (सी1 से सी7 तक की वर्टिब्रा) होती हैं, जो एक-दूसरे से डिस्क और लिगामेंट्स के जरिए जुड़ी होती हैं। उम्र बढ़ने के साथ ये डिस्क कमजोर हो जाती हैं। उनके बीच का कुशन कम हो जाता है और हड्डियों में घिसाव होने लगता है। इस कारण गर्दन में दर्द, अकड़न और नसों पर दबाव पड़ने लगता है, जिससे सिर, कंधे और हाथों में दर्द हो सकता है।
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और समय के साथ गंभीर हो सकते हैं। मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
गर्दन में लगातार दर्द रहना, विशेष रूप से लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठने के बाद। सुबह उठने पर या ठंडे मौसम में दर्द और ज्यादा महसूस होना।
सिर के पिछले हिस्से में दर्द महसूस होना। तनाव बढ़ने पर दर्द और ज्यादा बढ़ जाना।
गर्दन से कंधों, बाजू और हाथों में झुनझुनी या सुन्नता महसूस होना। कभी-कभी उंगलियों में भी कमजोरी महसूस होना।
सिर घुमाने पर हल्का-हल्का चक्कर आना। चलते समय संतुलन बनाने में कठिनाई होना।
गर्दन और कंधों की मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होना। हल्के काम करने पर भी जल्दी थकान होना।
40-50 वर्ष के बाद हड्डियों और जोड़ों में घिसाव होने लगता है, जिससे यह समस्या बढ़ जाती है।
ज्यादा देर तक कंप्यूटर, मोबाइल या टीवी देखने से गर्दन पर दबाव बढ़ता है।
सिर झुकाकर काम करने की आदत भी एक प्रमुख कारण है।
सर्वाइकल डिस्क का पतला होना या हड्डियों में बोन स्पर का बनना।
जोड़ों में सूजन और लचीलेपन की कमी आना।
किसी एक्सीडेंट या अचानक झटका लगने से सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
ज्यादा मानसिक तनाव से गर्दन की मांसपेशियां टाइट हो जाती हैं, जिससे दर्द और अकड़न बढ़ जाती है।
नियमित व्यायाम न करने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे गर्दन पर दबाव बढ़ता है।
यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही हो, तो यह आनुवंशिक रूप से अगली पीढ़ी में भी हो सकती है समय रहते आप अच्छे डॉक्टरों को ज़रूर दिखाएं।
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस उम्र बढ़ने से होने वाली एक सामान्य समस्या है, लेकिन कुछ विशेष कारक इसके विकसित होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं। इन जोखिम कारकों से बचाव करके हम इस समस्या को कम कर सकते हैं।
40-50 वर्ष की उम्र के बाद हड्डियों और जोड़ों में होने वाले प्राकृतिक घिसाव के कारण सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की संभावना बढ़ जाती है।
लंबे समय तक कंप्यूटर, मोबाइल या लैपटॉप का उपयोग करने से गर्दन पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। झुकी हुई मुद्रा से रीढ़ की हड्डी पर अनावश्यक तनाव बढ़ता है।
घंटों तक बिना हिले-डुले एक ही स्थिति में बैठे रहने से गर्दन की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। शारीरिक गतिविधियों की कमी सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के खतरे को बढ़ा सकती है।
एक्सीडेंट, गिरने या किसी अचानक झटके से गर्दन की संरचना प्रभावित हो सकती है। बार-बार गर्दन को झुकाने या उठाने वाले कार्य करने से भी यह समस्या बढ़ सकती है।
ज्यादा तनाव होने पर गर्दन और कंधों की मांसपेशियां कड़ी हो जाती हैं, जिससे दर्द और अकड़न बढ़ सकती है।
अधिक वजन होने से रीढ़ की हड्डी और डिस्क पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे हड्डियों का घिसाव तेजी से होता है।
धूम्रपान करने से हड्डियों और डिस्क को पोषण मिलने में बाधा आती है, जिससे उनकी उम्र जल्दी बढ़ जाती है और सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की संभावना बढ़ जाती है।
अगर परिवार में किसी को यह समस्या रही है, तो आनुवंशिक रूप से यह अगली पीढ़ी में भी हो सकती है।
अधिक वजन उठाने से रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ता है, जिससे गर्दन और पीठ में दर्द हो सकता है।
डायबिटीज, हाइपरटेंशन और गठिया जैसी बीमारियां हड्डियों और जोड़ों को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस का खतरा बढ़ जाता है इसलिए समय रहते रुमेटोलॉजी अस्पताल को दिखाना काफी ज़रूरी है।
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस एक आम समस्या बनती जा रही है, खासकर उन लोगों में जो लंबे समय तक कंप्यूटर, मोबाइल, या झुकी हुई मुद्रा में काम करते हैं। हालांकि, सही जीवनशैली और कुछ सावधानियों को अपनाकर इस समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।
बैठने और खड़े होने का सही तरीका:
हमेशा रीढ़ को सीधा रखें और गर्दन को झुका कर ज्यादा देर तक न बैठें। कंप्यूटर स्क्रीन को आंखों के स्तर पर रखें, ताकि गर्दन पर अधिक दबाव न पड़े। मोबाइल फोन को बहुत नीचे झुककर इस्तेमाल करने की बजाय आंखों की सीध में रखें।
सोते समय सावधानी:
सोते समय सही तकिए का उपयोग करें, जो न बहुत ऊंचा हो और न बहुत नीचे। गद्दा ज्यादा सख्त या ज्यादा मुलायम नहीं होना चाहिए। करवट लेकर सोना बेहतर होता है, पीठ के बल सोने से बचें।
नियमित व्यायाम करें:
गर्दन घुमाने वाले व्यायाम। गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत करता है। कंधे और पीठ की स्ट्रेचिंग करे। जिससे गर्दन और रीढ़ पर दबाव कम हो। योग और प्राणायाम करे। खासकर भुजंगासन, ताड़ासन और शलभासन गर्दन और रीढ़ की सेहत के लिए फायदेमंद हैं।
तनाव को कम करें:
मानसिक तनाव से मांसपेशियों में अकड़न बढ़ती है, जिससे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की संभावना बढ़ सकती है। मेडिटेशन, डीप ब्रीदिंग और रिलैक्सेशन तकनीकें अपनाएं। बहुत अधिक मानसिक दबाव और चिंता से बचें। रोज कम से कम 7-8 घंटे की नींद जरूर लें।
भारी वजन उठाने से बचें:
जरूरत से ज्यादा वजन उठाने से गर्दन और रीढ़ पर दबाव पड़ सकता है। यदि वजन उठाना जरूरी हो, तो सही तकनीक अपनाएं। हमेशा घुटनों को मोड़कर वजन उठाएं और गर्दन को सीधा रखें।
मोबाइल और लैपटॉप का सही उपयोग करें:
लंबे समय तक मोबाइल फोन या लैपटॉप पर झुककर काम करने से बचें। हर 30-40 मिनट बाद ब्रेक लें और गर्दन की हल्की एक्सरसाइज करें। लैपटॉप के साथ एक अलग कीबोर्ड और माउस का इस्तेमाल करें, ताकि स्क्रीन की ऊंचाई सही रहे।
संतुलित आहार लें:
कैल्शियम और विटामिन डी युक्त आहार लें (दूध, दही, पनीर, अंडा, मशरूम, सूरज की रोशनी)। हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, नट्स और बीज खाएं। प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी एसिड (मेवे, मछली, अलसी) का सेवन करें। ज्यादा नमक, चीनी और जंक फूड से बचें, क्योंकि ये हड्डियों को कमजोर कर सकते हैं।
धूम्रपान और शराब से बचें :
धूम्रपान से हड्डियों को नुकसान पहुंचता है और उनकी मजबूती कम हो जाती है, जिससे सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस जल्दी हो सकता है। शराब का अधिक सेवन करने से हड्डियों में सूजन आ सकती है।
नियमित रूप से फिजियोथेरेपी कराएं:
अगर कभी हल्का दर्द महसूस हो, तो फिजियोथेरेपिस्ट से सलाह लें। गर्दन और कंधों की हल्की मसाज करने से मांसपेशियों की जकड़न कम हो सकती है।
पर्याप्त नींद लें:
अच्छी नींद से शरीर की कोशिकाएं रिपेयर होती हैं और हड्डियां मजबूत रहती हैं। देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप इस्तेमाल करने से बचें।
नियमित हेल्थ चेकअप कराएं:
अगर बार-बार गर्दन में दर्द होता है, तो अच्छे डॉक्टर से परामर्श (best orthopedic Doctors in Noida) लें। समय-समय पर हड्डियों की जांच कराएं।
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही उपचार से इसके लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है और मरीज की जीवनशैली को बेहतर बनाया जा सकता है। उपचार के मुख्य रूप से दो तरीके होते हैं। गैर-सर्जिकल (दवाइयां, फिजियोथेरेपी, घरेलू उपाय) और सर्जिकल (जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन)।
गर्म और ठंडे सेंक :
गर्म सेक से मांसपेशियों की जकड़न और दर्द कम होता है।
ठंडे सेक से सूजन और दर्द में राहत मिलती है।
दिन में 2-3 बार 10-15 मिनट तक सिकाई करें।
सही तकिया और सोने की मुद्रा:
गर्दन के लिए मेमोरी फोम या ऑर्थोपेडिक तकिया उपयोग करें।
पीठ के बल या करवट लेकर सोएं, पेट के बल सोने से बचें।
स्ट्रेचिंग और व्यायाम :
गर्दन को हल्का आगे-पीछे और दाएं-बाएं घुमाना।
भुजंगासन, ताड़ासन, शलभासन और बालासन योगासन से राहत मिलती है।
15-20 मिनट हल्की एक्सरसाइज करें लेकिन झटके वाले मूवमेंट न करें।
तनाव कम करें :
तनाव से मांसपेशियां अधिक टाइट हो जाती हैं, जिससे दर्द बढ़ता है।
मेडिटेशन और डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें।
संतुलित आहार लें :
कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर आहार लें (दूध, दही, अंडे, मछली, सूरज की रोशनी)।
हरी सब्जियां, नट्स, बीज, और ओमेगा-3 युक्त आहार हड्डियों के लिए फायदेमंद हैं।
पेन रिलिवर :
दर्द और सूजन को कम करने के लिए आईबुप्रोफेन, एसिटामिनोफेन (पेरासिटामोल), नैप्रोक्सेन जैसी दवाएं दी जाती हैं (दवाई सिर्फ डॉक्टर्स के अनुसार ही लें)।
मांसपेशी रिलैक्सेंट :
साइकलोबेनज़ाप्रिन, टिजानिडीन जैसी दवाएं मांसपेशियों को आराम देती हैं।
स्टेरॉयड इंजेक्शन :
जब दर्द बहुत ज्यादा बढ़ जाए और दवाइयों से आराम न मिले, तो इपिड्यूरल स्टेरॉयड इंजेक्शन दिए जाते हैं, जो सूजन को कम करते हैं।
फिजियोथेरेपी :
अल्ट्रासाउंड थेरेपी, इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन, मैनुअल थेरेपी जैसी तकनीकें दर्द को कम करने में मदद करती हैं।
गर्दन और कंधे की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज दी जाती हैं।
अगर गंभीर दर्द, कमजोरी, सुन्नपन या चलने में दिक्कत हो रही है और दवाइयों व फिजियोथेरेपी से कोई फायदा नहीं मिल रहा, तो सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
सर्वाइकल लैमिनेक्टॉमी: रीढ़ की हड्डी पर दबाव को कम करने के लिए किया जाता है।
सर्वाइकल डिस्केक्टॉमी: डैमेज डिस्क को हटाकर नया इम्प्लांट लगाया जाता है।
स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी: हड्डियों को स्थिर करने के लिए किया जाता है।
एक्यूपंक्चर – दर्द और जकड़न में राहत देता है।
काइरोप्रैक्टिक उपचार – हड्डियों को सही पोजीशन में लाने में मदद करता है।
हर्बल और आयुर्वेदिक उपचार – अश्वगंधा, हल्दी और त्रिफला जैसी जड़ी-बूटियां फायदेमंद हो सकती हैं।
पंचकर्म थेरेपी – अभ्यंगम, स्वेदन और बस्ती जैसी आयुर्वेदिक थेरेपी से आराम मिल सकता है।
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस एक डिजेनेरेटिव (घिसाव से होने वाली) रीढ़ की समस्या है, जिसमें गर्दन के जोड़ और डिस्क प्रभावित होते हैं। दर्द, जकड़न, सिरदर्द और सुन्नपन जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार की थेरेपी प्रभावी हो सकती हैं।
फिजियोथेरेपी सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के सबसे प्रभावी गैर-सर्जिकल उपचारों में से एक है। इसमें गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत करने और दर्द को कम करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
गर्दन और कंधों की मांसपेशियों की जकड़न को कम करने के लिए हाथों से किया जाने वाला मसाज और हल्का खिंचाव।
ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने और दर्द कम करने में मदद करता है।
गर्दन की हड्डियों और डिस्क के बीच के गैप को बढ़ाने के लिए मशीन या हाथों से हल्का खिंचाव (traction) दिया जाता है।
दबाव कम होता है, नसों की सूजन घटती है और दर्द में राहत मिलती है।
हल्के विद्युत तरंगों से दर्द को नियंत्रित करने की तकनीक।
नसों और मांसपेशियों को आराम देकर स्ट्रेस और टेंशन कम करती है।
अल्ट्रासोनिक वेव्स के जरिए प्रभावित हिस्से में गहराई तक गर्मी पहुंचाकर दर्द और जकड़न कम की जाती है।
मांसपेशियों की सूजन और ऐंठन दूर होती है।
गर्म सिकाई: रक्त संचार बढ़ाकर मांसपेशियों को आराम देती है।
ठंडी सिकाई: सूजन और दर्द को कम करती है।
धीरे-धीरे गर्दन को आगे-पीछे, दाएं-बाएं और गोल-गोल घुमाने के अभ्यास।
इजोमेट्रिक एक्सरसाइज से गर्दन की ताकत बढ़ती है।
स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज से गर्दन के जोड़ लचीले होते हैं।
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और गलत जीवनशैली के कारण सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस एक आम समस्या बन गई है। इसे गर्दन के गठिया के रूप में भी जाना जाता है, जो गर्दन की हड्डियों, जोड़ों और डिस्क में घिसाव के कारण होता है। यदि समय पर सही इलाज न मिले, तो यह गंभीर दर्द और जकड़न का कारण बन सकता है।
फेलिक्स अस्पताल में:
अनुभवी ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ हैं, जो सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के सटीक निदान और प्रभावी उपचार में माहिर हैं। वे नवीनतम चिकित्सा तकनीकों के माध्यम से मरीजों को दर्द से राहत और जीवन की गुणवत्ता सुधारने में सहायता करते हैं।
डॉक्टर की सलाह के लिए आज ही फोन करें +91 9667064100.
सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस आयुर्वेदिक, घरेलू और चिकित्सा उपायों से नियंत्रण में रखा जा सकता है। सही लाइफस्टाइल और नियमित व्यायाम अपनाकर इस समस्या से बचा जा सकता है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस एक आम समस्या बनती जा रही है, लेकिन सही मुद्रा, नियमित व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इसे रोका या कम किया जा सकता है। यदि लक्षण गंभीर हों, तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
1-सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस क्या है ?
उत्तरः यह एक अपक्षयी स्थिति है, जिसमें गर्दन की हड्डियां, डिस्क और जोड़ों में घिसाव होता है, जिससे दर्द, जकड़न और सुन्नपन हो सकता है।
2-सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के लक्षण क्या हैं ?
उत्तरः इसमें गर्दन में दर्द, सिरदर्द, कंधों और बाहों में झुनझुनी या कमजोरी, चक्कर आना और संतुलन बिगड़ना शामिल है।
3-सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के कारण क्या हैं ?
उत्तरःयह उम्र बढ़ने, गलत मुद्रा, रीढ़ की डिस्क के घिसने, गर्दन पर चोट लगने, आनुवंशिकता और तनावपूर्ण जीवनशैली के कारण हो सकता है।
4-सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस क्या इलाज संभव है ?
उत्तरः हां, सही उपचार और जीवनशैली में बदलाव से इसे नियंत्रित किया जा सकता है, जिसमें फिजियोथेरेपी, योग, एक्सरसाइज, आयुर्वेदिक थेरेपी, दर्द निवारक दवाएं और जरूरत पड़ने पर सर्जरी शामिल हो सकती हैं।
5-सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस से बचाव कैसे किया जा सकता है ?
उत्तरः सही मुद्रा अपनाने, नियमित व्यायाम करने, गर्दन को सही सपोर्ट देने वाले तकिए का उपयोग करने, स्क्रीन को सही ऊंचाई पर रखने और योग व ध्यान से तनाव कम करने से इसे रोका जा सकता है।