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जॉन्डिस या पीलिया शरीर में बिलीरुबिन की बढ़ती मात्रा के कारण होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है। यह लिवर की बीमारी है और ग्रसित मरीज की स्किन और आंखों का पीला हो जाता है। अगर बिलीरुबिन की मात्रा बहुत अधिक हो जाए, तो यह पीलिया का कारण बन सकता है, जिससे लिवर की समस्याएं बढ़ सकती हैं। फेलिक्स हॉस्पिटल इस तरह की बीमारियों के इलाज में विशेषज्ञता रखता है और मरीजों को प्रभावी और उचित उपचार प्रदान करता है।
नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत ही सामान्य होता है। इसे आमतौर पर नवजात शिशुओं में दो सप्ताह के भीतर ही दूर किया जा सकता है। हालांकि, अगर पीलिया का स्तर ज्यादा हो, तो बच्चे को अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। इससे पहले कि आप परेशान हों, जानें कि नवजात में पीलिया होने के कई कारण हो सकते हैं।पीलिया का इलाज दर्द रहित है फेलिक्स हॉस्पिटल के पास अनुभवी नियोनेटोलॉजिस्ट , पीडियाट्रिशियन , गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉक्टरों की एक टीम है, जो पीलिया का इलाज करती है। हम पीलिया पर आपके किसी भी सवाल का जवाब देने में सक्षम है। ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100।
लिवर बिलीरुबिन को रक्त से अपशिष्ट पदार्थ के रूप में लेता है और इसकी रासायनिक संरचना को बदलकर इसके अधिकांश भाग को पित्त के माध्यम से मल के रूप में निकाल देता है। बिलीरुबिन, एक पीला-नारंगी पदार्थ है जो लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। जब ये कोशिकाएं मर जाती हैं या टूट जाती हैं तो इनसे निकलने वाले बिलीरुबिन को लिवर एकत्रित कर फिल्टर करता है। जब लिवर यह काम ठीक से नहीं कर पाता तो शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। इसी अतिरिक्त बिलीरुबिन के कारण पीलिया होता है। बिलीरुबिन के कारण ही पीलिया से ग्रसित मरीज की त्वचा और आंखों का रंग पीला दिखता है।
जन्म के समय से ही कई बच्चों में पीलिया होता है। हालांकि इसमें घबराने की कोई बात नहीं होती। यह कुछ दिनों बाद अपने आप ठीक हो जाता है। बच्चों में पीलिया के कई लक्षण दिखाई देतें हैं जैसे उल्टी और दस्त होना, 100 डिग्री से ज्यादा बुखार रहना, पेशाब का रंग गहरा पीला होना, चेहरे और आंखों का रंग पीला पड़ना आदि। बच्चों में पीलिया अधिकतर उनके लिवर के विकसित न होने के कारण होता है। इसके अलावा प्री-मैच्योर बेबी में पीलिया का खतरा अधिक होता है।
नवजात शिशुओं में पीलिया होने का सबसे अधिक खतरा होता है। 37 सप्ताह या 8.5 महीने से पहले जन्मे शिशु को पीलिया का खतरा अधिक होता है, क्योंकि अब तक उनका लिवर पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता है। इसके अलावा ऐसे शिशु, जिन्हें मां का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता है उन्हें भी इस बीमारी का खतरा होता है। इन सबके अलावा, जिन शिशुओं में सेप्सिस संक्रमण, आंतरिक रक्तस्राव, शिशु में लिवर की समस्या, जन्म के दौरान चोट लगना, शिशु की लाल रक्त कोशिकाओं में समस्या, खून के प्रकार का अलग होना जैसे आरएच रोग और आनुवंशिक समस्या जैसे कि जी6पीडी की कमी जैसी स्थितियों में पीलिया होने का जोखिम अधिक होता है।
पीलिया, जिसे अंग्रेज़ी में जॉन्डिस के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा अनायास हो जाती है, जिससे त्वचा, आखों और मुंह का पीलापन दिखाई देता है। यह स्थिति आमतौर पर जाँच और समय पर उपचार के बावजूद, अधिक गंभीर रूप ले सकती है। पीलिया के लक्षण विभिन्न हो सकते हैं जैसे कि थकान, पेट में दर्द, वजन में गिरावट, उल्टी और जी मिचलाना, बुखार, भूख की कमी, कमजोरी, शरीर में खुजली, नींद की कमी, फ्लू जैसे लक्षण, ठंड लगना, गहरे रंग का पेशाब, धूसर या पीले रंग का मल, और त्वचा के रंग में परिवर्तन। पीलिया के लक्षणों (Symptoms of jaundice in hindi) के साथ साथ इसके कारण जानना भी बहुत आवश्यक होते है | अधिक बिलीरुबिन की मात्रा के कारण, ये समस्याएं विकसित हो सकती हैं, जो अन्य गंभीर बीमारियों जैसे कि क्रोनिक हेपेटाइटिस, तीव्र हेपेटाइटिस, पायोडर्मा गैंग्रीनोसम, और पॉलीआर्थ्राल्जिया जैसी समस्याओं का कारण बन सकती हैं। इसलिए, अगर आपको इन लक्षणों में से कुछ भी महसूस हो रहे हैं, तो आपको तुरंत एक चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
पीलिया के निम्न लक्षण दिखने पर डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए:
फेलिक्स हॉस्पिटल पीलिया के इलाज में विशेषज्ञ डॉक्टरों की व्यापक टीम के साथ अनुभवी पीडियाट्रिशियन और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट है। हम इस बीमारी से जुड़े सभी सवालों का सही और समझाया जवाब देने में सक्षम हैं। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमें +91 9667064100 पर संपर्क करें।
पीलिया का इलाज उसके कारण पर निर्भर करता है। पीलिया की शुरुआती स्टेज में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते। इसकी वजह यह है कि यह खुद में एक बीमारी नहीं बल्कि यह कई अन्य गंभीर बीमारियों के कारण होता है। पीलिया के कुछ मामलों में इसके खास इलाज की जरूरत नहीं होती। इन्हें सामान्य उपचार और अपने आहार में बदलाव करके ठीक किया जा सकता है। जबकि इसकी सीरियस स्टेज में मरीज को हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ता है। डॉक्टरी इलाज के जरिए इसे ठीक किया जा सकता है। कब्ज, सूजन, गैस, पेट दर्द, दस्त, मतली और उल्टी होना पीलिया के इलाज के साइड इफेक्ट है। यह कुछ मरीजों में देखने को मिल सकते हैं।
एनीमिया और पीलिया के लक्षणों में निम्न मुख्य अंतर ये हैंः
आमतौर पर वयस्को में पीलिया का इलाज उसके लक्षणों व कारणों पर निर्भर करता है। यदि पीलिया तीन हफ्ते या उससे अधिक समय तक बना रहता है तो डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए। इसके लक्षण जितने कम दिखेंगे पीलिया उतनी जल्दी ठीक हो सकता है। पीलिया शरीर में बिलिरुबीन का स्तर बढ़ने के कारण होने वाली बीमारी है। स्तनपान करने वाले शिशुओं में पीलिया एक महीने तक रह सकता है। जबकि ऐसे बच्चे जो फॉर्मूला पर होते हैं उनमें पीलिया दो सप्ताह तक रह सकता है।
नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत आम बात है। आमतौर पर नवजात शिशुओं में पीलिया होने का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि, यह बच्चे में एक से दो सप्ताह के भीतर अपने आप आसानी से ठीक हो जाता है। अगर पीलिया का स्तर ऊंचा है, तो बच्चे को पीलिया हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ सकता है। ऐसे में आपके मन में भी यही ख्याल आता होगा कि इतनी देखभाल के बाद भी आखिर बेबी को पीलिया क्यों हो गया ।
पीलिया के लिए उपयुक्त आहार और देखभाल के बारे में अधिक जानने के लिए हमारी 'जॉन्डिस डाइट चार्ट' पर जाएँ और सही दिशा में कदम उठाएँ।
जन्म के समय बच्चे को पीलिया (jaundice) होना सामान्य बात है। हालांकि, इसके उपचार के कई तरीके हैं,जिन्हें आप नवजात शिशुओं में पीलिया के इलाज के लिए आजमा सकते हैं-
शिशु को बार-बार स्तनपान कराएं : यदि आपके नवजात शिशु को पीलिया है, तो उसे बार-बार दूध पिलाएं। नवजात शिशु को बार-बार स्तनपान कराने से रक्तप्रवाह बढ़ता है और बिलीरुबिन के मल और मूत्र के जरिए बाहर निकालने में मदद मिलती है। बता दें कि पीलिया होने पर बच्चे बहुत सोते हैं। अगर आपके बच्चे को पीलिया है, तो वह भी बहुत सो सकता है। लेकिन उसे दूध पिलाने या खाने के लिए नियमित समय जगाएं।
मां को भी लेना चाहिए स्वस्थ आहार : इसके अलावा जो मां नवजात शिशुओं को स्तनपान कराती है उन्हें हेल्दी डाइट को फॉलो करना चाहिए। मां को अपने आहार में ताजा, पौष्टिक, संतुलित भोजन शामिल करना चाहिए। इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, सप्ताह में एक बार सी फूड, हेल्दी फैट वाले खाद्य पदार्थ, सीड्स, नट्स, फल, मांस और फाइबर युक्त आहार खाएं। एक्सपर्ट का मानना है कि मां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती है, तब दोनों की स्कीन एकदूसरे के संपर्क में आती है। इससे भी बिलीरूबिन का स्तर घटता है।
पीलिया एक ऐसी स्थिति है (jaundice meaning in hindi) जिसमें बिलीरुबिन, पीले-नारंगी पित्त वर्णक के उच्च स्तर के कारण त्वचा, आंखों का सफेद भाग और श्लेष्मा झिल्ली पीली हो जाती है। पीलिया के कई कारण होते हैं, जिनमें हेपेटाइटिस, पित्त पथरी और ट्यूमर शामिल हैं। वयस्कों में, पीलिया का आमतौर पर इलाज करने की आवश्यकता नहीं होती है। पीलिया को रोकने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं है, क्योंकि यह विभिन्न स्थितियों के कारण हो सकता है। लेकिन अंतर्निहित बीमारियों को रोकने के तरीके हैं। लीवर विकारों के जोखिम को कम करने के लिए शराब का सेवन कम करें। हेपेटाइटिस संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए अच्छी स्वच्छता और सुरक्षित यौन संबंध बनाए।
पीलिया का इलाज दर्द रहित है फेलिक्स हॉस्पिटल के पास अनुभवी नियोनेटोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉक्टरों की एक टीम है, जो पीलिया का इलाज करती है। हम पीलिया पर आपके किसी भी सवाल का जवाब देने में सक्षम है। ज्यादा जानकारी के लिए हमें कॉल करें +91 9667064100.
-हां अगर लंबे समय तक इलाज न किया जाए तो पीलिया बेहद घातक हो सकता है। कुछ मामलों में पीलिया से मृत्यु भी हो सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि आप पीलिया की शुरुआत का पता चलते ही तुरंत चिकित्सा सहायता लें।
-हां अगर समय रहते इसके सही कारण का पता चल जाए तो पीलिया ठीक हो सकता है। पीलिया के लिए विभिन्न उपचार विधियों का उपयोग किया जाता है ताकि इसे कुछ ही समय में ठीक किया जा सके।
-नवजात शिशुओं को पीलिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है। चूंकि उनके लीवर अभी भी विकास के चरण में हैं, इसलिए पीलिया से पीड़ित बच्चों का इलाज करना मुश्किल हो जाता है। चिकित्सकीय भाषा में नवजात पीलिया के रूप में जानी जाने वाली यह स्थिति बहुत घातक साबित हो सकती है और अंततः शिशु की मृत्यु भी हो सकती है।
-पीलिया के सबसे मुख्य लक्षणों में आंखों के सफेद हिस्से का पीला पड़ना है। अगर आपकी आंखें पीली हो गयी हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। डॉक्टर आपके लक्षणों और जांच की मदद से पीलिया की पुष्टि करते हैं।
-पीलिया के लिए कई प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं जिसमें बिलीरुबिन टेस्ट, कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट, हेपेटाइटिस ए, बी और सी की जांच, एमआरआई स्कैन, अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन, एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियोंपैंक्रिटोग्राफी और लिवर बायोप्सी आदि शामिल हैं।
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