Maha Shivaratri Vrat : महाशिवरात्रि का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह भगवान शिव के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन, भक्त उपवास रखते हैं, शिवलिंग की पूजा करते हैं और रात भर जागरण करते हैं। व्रत आत्म-शुद्धि, संयम और आध्यात्मिक उन्नति के लिए रखा जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर व्रत रखना एक पवित्र परंपरा है, लेकिन डायबिटीज (Diabetes) और ब्लड प्रेशर (blood pressure) जैसी स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोगों के मन में अक्सर यह प्रश्न उठता है कि क्या वे भी सुरक्षित रूप से व्रत रख सकते हैं।


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महाशिवरात्रि इस बार 8 मार्च को है। भक्तगण इस पर्व का इंतजार साल भर करते हैं। इस दिन शिव और पार्वती जी की आराध्ना की जाती है। हिंदू पौराणिक कथा में इस पर्व की बहुत मान्यता है। इस दिन बहुत से लोग व्रत रखते हैं और भगवान की पूजा-आराध्ना करते हैं। इस दिन फलाहारी के साथ निर्जला व्रत भी रखा जाता है। अगर आप भी व्रत रखने के बारे में सोच रहे हैं और आपको भी डायबिटीज (Diabetes )की समस्या हैं, तो कुछ टिप्स को फॉलो करके आप आसानी से ये व्रत रख सकते हैं। डायबिटीज के मरीज को व्रत रखते समय कई तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए, जिससे ब्लड शुगर लेवल न बढ़ें। वहीं पेशेंट को व्रत रखने से पहले डॉक्टर की सलाह भी अवश्य लेनी चाहिए। भूखा रहने से शुगर लेवल बढ़ सकता है, जिससे शरीर को नुकसान हो सकता है।

 

  • डायबिटीज के मरीज अगर व्रत रख रहे हैं, तो उन्हें जमकर पानी पीना चाहिए। पानी पीने से शरीर के टॉक्सिनस बाहर निकलने के साथ शरीर भी हाइड्रेट रहता है, जिससे कमजोरी का अनुभव कम होता है। डायबिटीज के मरीज पानी पीने के साथ छाछ और नींबू पानी का सेवन भी कर सकते हैं।
  • डायबटीज के मरीज महा शिवरात्रि के व्रत के दौरान ज्यादा मात्रा में फल खाने से भी बचें। फलों में शुगर की मात्रा होती है। ऐसे में ज्याजा खाने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। कई फलों का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज्यादा होता है। जैसे अंगूर, संतरा और केला का सेवन व्रते के दौरान हरगिज न करें।
  • डायबिटीज के मरीज महाशिवरात्रि का व्रत रखने पर भी समय पर दवाइयों का सेवन करें। दवाईयों का सेवन न करने से ब्लड शुगर बढ़ सकता है। खाली पेट दवाई लेने से बचना चाहिए। ऐसे में कुछ ठोस पदार्थ खाने के बाद ही दवाइयों का सेवन करें।
  • डायबिटीज के मरीज अगर महाशिवरात्रि का व्रत रख रहे है, तो उन्हें लंबे समय तक भूखा रहने से बचना चाहिए। भूखे रहने से ब्लड शुगर में इजाफा हो सकता है। आप व्रत में लौकी की सब्जी औरमखाने की खीर का सेवन कर सकते हैं। इन चीजों के सेवन से शरीर को एनर्जी मिलती है और ब्लड शुगर लेवल भी कंट्रोल होता है। मखाने की खीर में भूलकर भी चीनी न डालें।
  • बहुत से लोग व्रत के दौरान भूख को कंट्रोल करने के लिए काफी मात्रा में चाय का सेवन करते हैं, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। ज्यादा मात्रा में चाय पीने से पेट में गैस और ब्लोटिंग की समस्या होने के साथ ब्लड शुगर लेवल भी बढ़ सकता हैं।
     

क्यों मनाते हैं महाशिवरात्र:

हर महीने में शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, लेकिन फाल्गुन माह की शिवरात्रि का विशेष महत्व है। इसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसी वजह से फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

 

इस बार महाशिवरात्रि 8 मार्च को है। इस अवसर पर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा और व्रत करने का विधान है। शायद कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि आखिर किस वजह से महाशिवरात्रि के त्योहार को मनाया जाता है।  पौराणिक कथा के अनुसार, देवों के देव महादेव और मां पार्वती का विवाह फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। इसी वजह से हर साल फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस विशेष अवसर पर शिव भक्त भगवान शिव की बारात निकालते हैं। साथ ही भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही व्रत करते हैं।मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से साधक को वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। साथ ही दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 08 मार्च को रात्रि में 09 बजकर 57 मिनट से होगा और जिसका समापन अगले दिन यानी 09 मार्च को शाम को 06 बजकर 17 मिनट पर होगा। ऐसे में 08 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।

 

जानें किन बातों का रखें ध्यान:

  • स्वास्थ्य परिस्थिति की जांच (Health status check) : व्रत शुरू करने से पहले अपनी स्वास्थ्य स्थिति की जांच करें. अगर आपको हाल ही में कोई स्वास्थ्य समस्या हुई है, तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
  • आहार में संतुलन :  (balance in diet) व्रत के दौरान आहार में संतुलन बनाए रखें. फल, दूध, और नट्स जैसे पोषण से भरपूर आहार शामिल करें।
  • निर्जलीकरण से बचाव (prevent dehydration): पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं. अगर आप निर्जल हो जाते हैं, तो यह आपके ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • दवाइयों की निगरानी (medication monitoring) : व्रत के दौरान अपनी दवाइयों की खुराक और समय पर विशेष ध्यान दें. आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर से दवाई के समय और खुराक में बदलाव के बारे में पूछें।
  • शारीरिक लक्षणों पर ध्यान दें (attention to physical symptoms) : व्रत के दौरान अगर चक्कर आना, कमजोरी, थकान या कोई अन्य शारीरिक लक्षण महसूस हो, तो तुरंत ध्यान दें और आवश्यकता पड़ने पर व्रत तोड़ दें।
  • व्रत के रूल्स में थोड़ा आराम दें : अगर पूरा दिन उपवास करना आपके लिए मुश्किल है, तो कुछ देर के लिए या फल खाकर व्रत रखने का सोचें।
  • फलों में प्राकृतिक शर्करा होती है जो आपको तुरंत ऊर्जा देती है और दही में प्रोबायोटिक्स होते हैं जो आपके पाचन को सहायता प्रदान करते हैं। इसलिए, व्रत के दौरान ऐसे आहार चुनें जो न केवल आपको पोषण दें बल्कि आपके पेट को भी आराम दें। इस तरह से आप व्रत को आसानी से और स्वास्थ्यपूर्ण तरीके से पूरा कर सकेंगे।

 

क्या है डायबिटीज:

डायबिटीज (Diabetes) एक आजीवन रहने वाली बीमारी है। यह एक मेटाबॉलिक डिसॉर्डर है, जिसमें मरीज के शरीर के रक्त में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है। जब, व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन (Insulin) नहीं बन पाता है और शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति ठीक से प्रतिक्रिया नहीं कर पाती हैं। जैसा कि, इंसुलिन का बनना शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रक्त से शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज़ का संचार करता है। इसीलिए, जब इंसुलिन सही मात्रा में नहीं बन पाता तो पीड़ित व्यक्ति के बॉडी मेटाबॉलिज्म (Body Metabolism) पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

 

डायबिटीज़ के प्रकार कितने हैं ?

(Types of diabetes in hindi) हम जो भोजन करते हैं उससे, शरीर को ग्लूकोज प्राप्त होता है जिसे कोशिकाएं शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में उपयोग करती हैं। यदि शरीर में इंसुलिन मौजूद नहीं होता है तो वे अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाती हैं और ब्लड से कोशिकाओं को ग्लूकोज नहीं पहुंचा पाती हैं। जिसके कारण ग्लूकोज ब्लड में ही इकट्ठा हो जाता है और ब्लड में अतिरिक्त ग्लूकोज नुकसानदायक साबित हो सकता है। आमतौर पर डायबिटीज़ 3 प्रकार का होता है।

 

  • टाइप-1 डायबिटीज
  • टाइप-2 डायबिटीज और
  • जेस्टेशनल डायबिटीज, जो कि प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली हाई ब्लड शुगर की समस्या है।
     

डायबिटीज के कारण क्या हैं ?

(Causes of diabetes) जब शरीर सही तरीके से रक्त में मौजूद ग्लूकोज़ या शुगर का उपयोग नहीं कर पाता। तब, व्यक्ति को डायबिटीज की समस्या हो जाती है। आमतौर पर डायबिटीज के मुख्य कारण निम्न स्थितियां हो सकती हैं।

 

  • इंसुलिन की कमी
  • परिवार में किसी व्यक्ति को डायबिटीज होना
  • बढ़ती उम्र
  • हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल
  • एक्सरसाइज ना करने की आदत
  • हार्मोन्स का असंतुलन
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • खानपान की गलत आदतें
     

डायबिटीज के लक्षण क्या हैं ?

(Symptoms of diabetes) पीड़ित व्यक्ति के शरीर में बढ़े हुए ब्लड शुगर के अनुसार उसमें डायबिटीज के लक्षण दिखाई देते हैं। ज्यादातर मामलों में अगर व्यक्ति प्री डायबिटीज या टाइप-2 डायबिटीज का से पीड़ित हो तो, समस्या की शुरूआत में लक्षण दिखाई नहीं पड़ते। लेकिन टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों में डायबिटीज लक्षण बहुत तेजी से प्रकट होते हैं और ये काफी गंभीर भी होते हैं। टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के मुख्य लक्षण निम्न हो सकते हैं-

 

  • बहुत अधिक प्यास लगना
  • बार-बार पेशाब आना
  • भूख बहुत अधिक लगना
  • अचानक से शरीर का वजह कम हो जाना या बढ़ जाना
  • थकान
  • चिड़चिड़ापन
  • आंखों के आगे धुंधलापन
  • घाव भरने में बहुत अधिक समय लगना
  • स्किन इंफेक्शन
  • ओरल इंफेक्शन्स
  • वजाइनल इंफेक्शन्स
     

डायबिटीज का निदान क्या है ?

(Diagnosis of diabetes) डायबिटीज या मधुमेह के लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डायबिटीज के निदान के लिए इस प्रकार के कुछ टेस्ट कराने की सलाह दी जा सकती है-

 

  • ए 1सी टेस्ट (A1C test or glycohemoglobin test)

इस प्रकार का टेस्ट टाइप 2 डायबिटीज के लिए किया जाता है। जिसमें, मरीज को हर 3 महीने में एक बार ब्लड टेस्ट कराना होता है और उसका एवरेज ब्लड ग्लूकोज लेवल जांचा जाता है। ए1सी टेस्ट में 5 से 10 तक के अंकों में ब्लड में ग्लूकोज़ का स्तर मापा जाता है। अगर टेस्ट रिपोर्ट में 5.7 से नीचे का आंकड़ा दिखाया जाता है तो वह नॉर्मल होता है। लेकिन अगर किसी का ए1सी लेवल 6.5% से अधिक दिखायी पड़ता है तो वह, डायबिटीज का मरीज़ कहलाता है।

 

  • फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट:

हाई ब्लड शुगर की स्थिति को समझने के लिए यह सबसे आम ब्लड टेस्ट है। इस टेस्ट के लिए व्यक्ति को खाली पेट रहते हुए ब्लड सैम्पल देना पड़ता है। जिसके लिए 10-12 घंटों तक भूखे रहने के लिए कहा जाता है। उसके बाद फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट डायबिटीज या प्रीडायबिटीज का पता लगाने के लिए किया जाता है।

 

  • ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट:

इस टेस्ट में भी खाली पेट रहते ही ब्लड सैम्पल लिया जाता है। यह टेस्ट करने से दो घंटे पहले मरीज को ग्लूकोज युक्त पेय पदार्थ पिलाया जाता है।

 

  • रैंडम ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट:

इस प्रकार के टेस्ट में पीड़ित व्यक्ति के ब्लड सैम्पल की चार बार जांच की जाती है। अगर ब्लड शुगर लेवल दो बार नॉर्मल से ज्यादा पाया जाता है तो प्रेगनेंट महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज होने की पुष्टि की जाती है।

 

डायबिटीज का उपचार क्या है?

(Diabetes treatment) टाइप-1 डायबिटीज का कोई स्थायी उपचार नहीं है इसीलिए, व्यक्ति को पूरी ज़िंदगी टाइप-1 डायबिटीज का मरीज़ बनकर रहना पड़ता है। ऐसे लोगों को इंसुलिन लेना पड़ता है जिसकी मदद से वे अपनी स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, टाइप-2 डायबिटीज के लक्षणों से बिना किसी दवा के प्रतिदिन एक्सरसाइज, संतुलित भोजन, समय पर नाश्ता और वजन को नियंत्रित करके छुटकारा पाया जा सकता है। सही डायट की मदद से टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके अलावा कुछ ओरल एंटीबायोटिक्स दवाएं टाइप-2 डायबिटीज को बढ़ने से रोकने में मदद करती हैं।

 

डायबिटीज से बचाव के उपाय क्या हैं:

(Preventions of diabetes) डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है जिससे, आपको आजीवन परेशानियां हो सकती हैं। डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। लेकिन,  कुछ सावधानियां बरतकर डायबिटीज की बीमारी से बचा जा सकता है। मीठा कम खाएं। शक्कर से भरी और रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट वाला भोजन करने से बचें। एक्टिव रहें, एक्सरसाइज करें, सुबह-शाम टहलने जाएं।


पानी ज्यादा पीएं। मीठे शर्बत और सोडा वाले ड्रिंक्स पीने से बचें। आइसक्रीम, कैंडीज खाने से भी परहेज करें। वजन घटाएं और नियंत्रण में रखें। स्मोकिंग और अल्कोहल लेने से परहेज करें। हाई फाइबर डायट खाएं, प्रोटीन का सेवन भी अधिक मात्रा में करें। विटामिन डी की कमी ना होने दें। क्योंकि, विटामिन डी की कमी से डायबिटीज का खतरा बढ़ता है।

 

(उच्‍च रक्‍तचाप) क्‍या है ? - What is Hypertension (High Blood Pressure)

हाई ब्लड प्रेशर का ही दूसरा नाम हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) है। आपको पता होगा कि हमारे शरीर में मौजूद रक्त नसों में लगातार दौड़ता रहता है और इसी रक्त के माध्यम से शरीर के सभी अंगों तक ऊर्जा और पोषण के लिए जरूरी ऑक्सीजन, ग्लूकोज, विटामिन्स, मिनरल्स आदि पहुंचते हैं।  ब्लड प्रेशर उस दबाव को कहते हैं, जो रक्त प्रवाह की वजह से नसों की दीवारों पर पड़ता है। आमतौर पर ये ब्लड प्रेशर इस बात पर निर्भर करता है कि हृदय कितनी गति से रक्त को पंप कर रहा है और रक्त को नसों में प्रवाहित होने में कितने अवरोधों का सामना करना पड़ रहा है। मेडिकल गाइडलाइन्स के अनुसार 130/80 mmHg से ज्यादा रक्त का दबाव हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर की श्रेणी में आता है। हाइपरटेंशन के कारण भारत में हर साल लगभग 2.5 लाख लोग मरते हैं जबकि विश्वभर में ये आंकड़ा करोड़ों लोगों का है। खास बात ये है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनियों के बावजूद खराब जीवनशैली और अस्वस्थ खान-पान के चलते इसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वैसे तो हाई ब्लड प्रेशर से शरीर का कोई भी अंग प्रभावित हो सकता है मगर इसका सबसे ज्यादा खतरा हृदय यानि दिल को होता है। जब ह्वदय को संकरी या सख्त हो चुकी रक्त वाहिकाओं के कारण पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलता तो सीने में दर्द होता है। ऐसे में अगर खून का बहाव रुक जाए तो हार्ट-अटैक या कार्डियक अरेस्ट भी हो सकता है।
 

हाइपरटेंशन का कारण - (Hyper Tension Causes)

कारणों के अनुसार देखें तो हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप दो तरह का होता है:

 

प्राइमरी हाइपरटेंशन - प्राइमरी हाइपरटेंशन ज्यादातर युवाओं को होता है और इसका कोई खास कारण नहीं होता है बल्कि लगातार अनियमित जीवनशैली की वजह से ये धीरे-धीरे समय के साथ हो जाता है। इस तरह के ब्लड प्रेशर का कारण बहुत आम होता है जैसै:

 

  • मोटापा
  • नींद की कमी
  • अत्यधिक गुस्सा करना
  • मांसाहारी भोजन का अधिक सेवन
  • तनाव
  • तैलीय पदार्थों और अस्वस्थ खान-पान
     

सेकेंडरी हाइपरटेंशन :सेकेंडरी हाइपरटेंशन वो है जो शरीर में किसी रोग के कारण या किसी स्थिति के कारण हो जाता है। आमतौर पर सेकेंडरी हाइपरटेंशन के निम्न कारण होते हैं।

 

  •  ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया
  •  किडनी का कोई रोग
  •  एड्रीनल ग्लैंड ट्यूमर
  •  थायरॉइड की समस्या
  •  अनुवांशिक कारणों से नसों में कोई खराबी
  •  गर्भनिरोधक दवाओं का अधिक सेवन, - सर्दी-जुकाम और दर्द की दवाओं का अधिक सेवन
  •  शराब, सिगरेट, ड्रग्स आदि का नशा करने से

 

हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) के लक्षण - (Osteoporosis Symptoms)

उच्‍च रक्‍तचाप के प्रारंभिक लक्षण में रोगी के सिर के पीछे और गर्दन में दर्द रहने लगता है। कई बार इस तरह की परेशानी को वह नजरअंदाज कर देता है, जो आगे चलकर गंभीर समस्‍या बन जाती है। आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर के ये लक्षण होते हैं।

 

  • तनाव होना
  • सिर में दर्द
  • सांसों का तेज चलना और कई बार सांस लेने में तकलीफ होना
  • सीने में दर्द की समस्या
  • आंखों से दिखने में परिवर्तन होना जैसे धुंधला दिखना
  • पेशाब के साथ खून निकलना
  • सिर चकराना
  • थकान और सुस्ती लगना
  • नाक से खून निकलना
  • नींद न आना
  • दिल की धड़कन बढ़ जाना

कई बार कुछ लोगों में उच्‍च रक्‍तचाप से संबंधित कोई भी लक्षण नजर नहीं आता। उन्‍हें इस बारे में चेकअप के बाद ही जानकारी होती है। हाई ब्‍लड प्रेशर के लक्षण दिखाई न देना किडनी और हार्ट के लिए घातक हो सकता है इसलिए अगर आपको लगातार थकान या आलस जैसी सामान्य समस्या भी है, तो अपना ब्लड प्रेशर जरूर जांच करवाएं।
 

ब्लड प्रेशर के प्रकार:

प्रत्‍येक व्‍यक्ति के ब्‍लड प्रेशर में दो माप शामिल होती हैं, पहली सिस्टोलिक और दूसरी डायस्टोलिक। इसे उच्‍चतम रीडिंग और निम्‍नतम रीडिंग भी कहा जाता है। मांसपेशियों में संकुचन हो रहा है या धड़कनों के बीच तनाव मुक्‍तता में अलग-अलग माप होती है। आराम के समय सामान्य रक्‍तचाप में उच्‍चतम रीडिंग यानी सिस्टोलिक 100 से 140 तक और डायस्‍टोलिक यानी निचली रीडिंग 60 से 90 के बीच होती है। अगर कई दिन तक किसी व्‍यक्ति का रक्‍तचाप 140/90 बना रहता है तब उसे हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या है।

 

हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) के खतरे - High BP (High Blood Pressure Complications) :

अगर आप उच्‍च रक्‍तचाप की समस्‍या से ग्रस्‍त हैं तो आपको इससे संबंधित कई खतरे हो सकते हैं। उच्‍च रक्‍तचाप के कारण दिल के दौरे और दिल संबंधित बीमारियों के होने का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा इस समस्‍या से ग्रस्‍त लोगों को कोलेस्‍ट्रॉल और डायबिटीज की भी जांच करानी चाहिए। उच्‍च रक्‍तचाप के कारण कई अन्‍य बीमारियां होने की संभावना भी रहती है। हाई ब्लड-प्रेशर में रोगी की याद्दाश्‍त पर असर हो सकता है, जिसे डिमेंशिया कहा जाता है। इसमें रोगी के मस्तिष्क में खून की आपूर्ति कम हो जाती है, और सोचने-समझने की शक्ति घटती जाती है। हाई ब्लड-प्रेशर के कारण किडनी की रक्त वाहिकाएं संकरी या मोटी हो सकती हैं। इसके कारण आंखों की रोशनी कम होने लगती है उसे धुंधला दिखाई देने लगता है।
 

हाइपरटेंशन का दिल पर प्रभाव:

यह हृदय को रक्‍त पहुंचाने वाली धमनियों को सख्‍त अथवा मोटा कर सकता है। जिससे उनकी चौड़ाई कम हो जाती है। परिणामस्‍वरूप हृदय को पर्याप्‍त मात्रा में रक्‍त नहीं मिल पाता और एन्‍जिनिया, हार्ट डिजीज और कोरोनेरी हार्ट डिजीज होने का अंदेशा काफी बढ़ जाता है।

 

इससे हार्ट अटैक हो सकता है। वास्‍तव में जिस व्‍यक्ति को एक्‍यूट हार्ट अटैक आया हो, उन्‍हें पहले से हाइपरटेंश होता है, जो चोरी से अचानक सामने आता है और फिर उसका इलाज किया जाता है।


हाइपरटेंशन से दिल की मांसपेशियां असामान्‍य रूप से मोटी हो जाती हैं, जिसे बायें निलय अतिवृद्धि कहा जाता है। जो भविष्‍य में कार्डियोवस्‍कुलर डिजीज के कारण मौत होने का बड़ा कारक होता है। उच्‍च रक्‍तचाप हृदय पर काफी दबाव डालता है। इससे हृदय को सामान्‍य से अधिक काम करना पड़ता है। इससे दिल का आकार लगातार बढ़ता रहता है और बाद में यह कमजोर होने लगता है। यही समस्‍या आगे चलकर हार्ट फेल्‍योर का कारण बनती है। सबऑ‍प्‍टीमल यानी उच्‍चतम रक्‍तचाप, स्‍थानिक हृदयाघात के 50 फीसदी मामलों के लिए उत्‍तरदायी होता है। सिस्टोलिक रक्‍तचाप में 20 mmHgअथवा डास्‍टोलिक रक्‍तचाप में 10 mmHg की बढ़त रक्‍तचाप से होने वाली मौत का खतरा दोगुना कर देती है। हाइपरटेंशन के सही इलाज से इस बीमारी के व्‍यापक गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है।

 

एंटीहाइपरटेंनसिव थेरेपी से हार्ट अटैक के मामलों में 20 से 25 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है। वहीं, हार्ट फेल्‍योर के मामले भी औसतन 50 फीसदी से भी अधिक तक कम किये जा सकते हैं।
 

गर्भावस्था में हाइपरटेंशन का प्रभाव - (Gestational Hypertension)

गर्भावस्‍था में यदि हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या लंबे समय से हो तो यह दीर्घकालिक उच्च रक्तचाप या क्रॉनिक हाइपरटेंशन कहलाता है। यदि हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या प्रेग्‍नेंसी के 20 सप्ताह बाद, प्रसव में या प्रसव के 48 घंटे के भीतर होता है तो यह प्रेग्नेंसी इड्यूस्ड हाइपरटेंशन कहलाता है। इस दौरान यदि रक्तचाप 140/90 या इससे अधिक है तो महिला और बच्‍चे दोनों को परेशानी हो सकती है। इससे मरीज एक्‍लेंप्शिया में पहुंच सकता है, यह एक प्रकार की जटिलता है जिसमें महिला को झटके आने शुरू हो जाते हैं।


महिलाओं में प्रेग्‍नेंसी के हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या बहुत देखी जाती है। भ्रूण के विकास के साथ यह समस्‍या गंभीर होती जाती है। प्रेग्‍नेंसी के दौरान यदि भोजन में पौष्टिक खाद्य पदार्थों का अभाव है तो महिलायें रक्ताल्पता की शिकार होती हैं। शरीर में ब्‍लड की कमी से फीटस का विकास रुक जाता है। इससे मिसकैरेज होने की संभावना भी बनी रहती है।
 
प्रेग्‍नेंसी के दौरान हाई ब्‍लड प्रेशर तीन प्रकार का होता है- क्रोनिक हाइपरटेंशन, गेस्‍टेशनल हाइपरटेंशन और प्रीक्‍लेंप्शिया।
 

गर्भावस्‍था में हाई ब्‍लड प्रेशर के खतरे:

गर्भावस्‍था के दौरान उच्‍च रक्‍तचाप के कारण बच्‍चे का विकास बाधित हो सकता है। बच्‍चे के लिए जरूरी विटामिन और प्रोटीन नही मिल पाता। इसका असर होने वाले बच्‍चे के वजन पर भी पड़ता है। हाइपरटेंशन के कारण गर्भनाल को नुकसान हो सकता है। कुछ मामलों में गर्भनाल गर्भाशय से अलग हो जाता है। इसके कारण बच्‍चे की ऑक्‍सीजन की आपूर्ति बाधित होती है। महिला को रक्‍तस्राव भी हो सकता है। गर्भावस्‍था के दौरान हाई ब्‍लड प्रेशर से समय से पूर्व डिलीवरी होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि महिला को गर्भावस्‍था के दौरान हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या है तो प्रसव के 20 सप्‍ताह बाद हृदय की बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्‍था के दौरान उचित खानपान और नियमित चेकअप के जरिए इसकी जटिलताओं को कम किया जा सकता है। यदि आपको इस दौरान हाइपरटेंशन के लक्षण दिखें तो चिकित्‍सक से तुरंत संपर्क कीजिए।

 

हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) की जांच - (Hypertension Tests)

रक्तचाप को मापना बहुत आसान है। ज्यादातर अस्पतालों में डॉक्टर से मिलने से पहले आपका ब्लड प्रेशर और वजन जांच लिया जाता है। आमतौर पर ब्लड प्रेशर को लगातार जांचते रहने पर सही परिणाम मिलते हैं। केवल एक बार रीडिंग ज्यादा होने पर ही इसका इलाज नहीं किया जा सकता है। आजकल बाजार में कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटर मिलते हैं, जिनकी मदद से आप घर में ही आसानी से अपना ब्लड प्रेशर चेक कर सकते हैं और इस पर नजर रख सकते हैं। शुरू में दवाओं को एडजस्ट करते समय ब्लड प्रेशर नाप कर एक गोल निश्चित कर लें। सामान्‍य ब्लड प्रेशर 120/80 mmHg से कम होता है।  ब्लड प्रेशर के 130/80 mmHg से ज्यादा हो जाने पर इसे हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर की श्रेणी में रखते हैं। जिन्हें डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर है, उनका ब्लड प्रेशर 130/80 या उससे कम होना चाहिए। अगर आपका ब्लड प्रेशर लागातार हाई रह रहा है तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ऐसी स्थिति में चिकित्सक आपको ब्लड प्रेशर के अलावा इन जांचों के लिए कह सकता है।

 

  • यूरिन टेस्ट
  • ब्लड टेस्ट
  • कोलेस्ट्रॉल टेस्ट
  • हार्ट की ईसीजी
  • हार्ट या किडनी का अल्ट्रासाउंड
     

हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) का इलाज - (Hypertension Treatment in Hindi)

प्राइमरी हाइपर टेंशन का इलाज -  प्राइमरी हाइपरटेंशन को ठीक करने के लिए आपको कुछ दवाएं देते हैं जिनसे आपका ब्लड प्रेशर सामान्य रहता है मगर इसके साथ ही जीवनशैली में जरूरी बदलाव की सलाह देते हैं क्योंकि प्राइमरी हाइपरटेंशन का मुख्य कारण ही जीवनशैली की अनियमितता है। ऐसे मामलों में डॉक्टर आपको निम्न सलाह दे सकते हैं।


नियमित चेकअप रक्‍तचाप को नियंत्रित रखने और हाई ब्‍लड प्रेशर से निदान के लिए जरूरी है कि आप अपने ब्‍लड प्रेशर की नियमित जांच कराएं। स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक ब्‍लड प्रेशर पारा 90 और 120 मिलीमीटर के बीच और सामान्य डायालोस्टिक रक्‍तचाप पारा 60 से 80 मिलीमीटर के बीच होता है।

 

नमक का सेवन कम करें आपको अपने आहार में नमक का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए। अधिक मात्रा में नमक का सेवन, हृदय समस्‍याओं के खतरे को बढ़ाता है। यदि आप समय रहते अपने खान-पान पर ध्यान देंगे तो आपको भविष्‍य में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी।

 

कोलेस्‍ट्रॉल नियंत्रित रखें आपको ऐसे आहार का सेवन नहीं करना चाहिए, जिससे कोलेस्‍ट्रॉल का स्‍तर बढ़ सकता है। कोलेस्‍ट्रॉल का स्‍तर बढ़ने से रक्‍तचाप का स्‍तर भी बढ़ता है और इसका असर आपके हृदय पर भी पड़ता है। हृदय को तंदुरुस्‍त बनाए रखने के लिए मौसमी फलों और हरी सब्जियों के साथ ही मछली का सेवन करना चाहिए।

 

गुस्सा कम करें अक्‍सर देखा जाता है कि जो लोग ज्‍यादा गुस्‍सा करते हैं, उनका रक्‍तचाप का स्‍तर भी अधिक होता है। गुस्‍से आपके जीवन पर नकारात्‍मक असर डालता है और ऐसे में आप तनाव में भी रहते हैं। तनाव दूर करने और रक्‍तचाप नियंत्रित करने के लिए आप मेडिटेशन और योग का सहारा ले सकते हैं।

 

एल्‍कोहल से रहें दूर विशेषज्ञों के मुताबिक ज्‍यादा मात्रा में एल्‍कोहल का सेवन भी आपके ब्‍लड प्रेशर को बढ़ाता है। एल्‍कोहल के सेवन से वजन बढ़ता है, भविष्‍य में यह आपके दिल के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है। स्वास्‍थ्‍य और रहन-सहन पर ध्यान देकर आप हृदय संबंधी परेशानियों से बच सकते हैं।

 

नियमित व्यायाम है लाभकारी नियमित व्‍यायाम करना आपकी सेहत के लिए फायदेमंद होता है। साथ ही व्‍यायाम आपका उच्‍च रक्‍तचाप और हृदय रोग से भी बचाव करता है। प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट का व्यायाम अवश्य करना चाहिए। यदि आप किसी रोग या समस्या से ग्रस्त हैं तो डॉक्टर से सलाह लें कि किस तरह का व्यायाम आपके लिए सही रहेगा। वजन को नियंत्रित करें सामान्‍य से ज्‍यादा वजन उच्‍च रक्‍तचाप का कारण होता है। यदि आपका वजन अधिक है, तो आपको हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने वजन को नियंत्रित रखें, इससे आपके रक्‍तचाप का स्‍तर भी नियंत्रित रहेगा।
 

सेकेंडरी हाइपरटेंशन का इलाज -

सेकेंडरी हाइपरटेंशन चूंकि शरीर की ही किसी समस्या के कारण होता है इसलिए ऐसे मामलों में डॉक्टर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने की दवा दे देते हैं मगर उनका मुख्य फोकस उस बीमारी को खत्म करना होता है जिसके कारण ब्लड प्रेशर हाई हुआ है। कई बार ये काम मुश्किल हो जाता है क्योंकि रोग के इलाज के लिए जो दवाएं उपलब्ध होती हैं, उन दवाओं के सेवन से ब्लड प्रेशर उल्टा बढ़ने लगता है। इसलिए ऐसे मामले में किसी योग्य चिकित्सक से ही सलाह लें। कई बार ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए दोनों तरह के ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है यानि रोग के इलाज की भी और जीवनशैली में बदलाव की भी, ऐसी स्थिति में चिकित्सक आपको उचित सलाह दे सकता है
 

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